जीवन की शुरुवात सोच-विचार से होती है और जीवन सोच-विचार के साथ ही खत्म हो जाता है। परन्तु मानव कभी भी अपनी सोच - विचार की दुनिया से बहार नहीं निकल पाता है।
सोच - विचार के शब्द को ही लेलो जो कोई इसको पढ़ेगा वो यही सोचेगा ही सोच और विचार का मतलब तो एक ही है पर लेखक ने दो शब्दों का प्रयोग क्यों किया है। ये भी हो सकता है की कोई पढ़ते वक़्त न भी सोचे पर ये बात तो ज़रूर है की वो कुछ तो सोचेगा, उपरोक्त लिखी हुई लाइनों को पढ़ कर। बस इसी तरह सोचते - विचारते जीवन कब निकल जायेगा ये पता भी नहीं चलेगा।
अंत में बस यही की सोचो क्योकि तुम्हारे पास और करने को भी क्या है। मानव का जीवन सोचने के लिए ही हुआ है।
।। सोचते रहो ।।
अशोक कुमार
Nice
जवाब देंहटाएंthanks buddy!
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