हमारा इस तरह से दुबारा मिलाना किस्मत का खेल है।

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ये कहानी देव और निशा की है। देव, निशा को बचपन से प्यार करता था। दोनों एक ही स्कूल में पढ़ते थे। दोनों का सेक्शन अलग-अलग था। हर दिन देव, उसको देखने के बहाने स्कूल जाया करता था। जिस दिन उसका मन न भी उस दिन भी वो स्कूल सिर्फ निशा की वजह से जाया करता था। निशा को भी पता थी की देव उसको पसंद करता है।

दोनों की दसवीं पूरी हो जाती है पर कभी आपस में बात नहीं कर पाते हैं। दसवीं का लास्ट एग्जाम था और देव आज निशा से बात करना चाहता था। पर कुछ ऐसा माहौल बना की वो दोनों मिल ही नहीं पाए। देव के दोस्त उसको जबरन बाइक पर बैठा कर ले गए। देव किसी को भी नहीं बताता था की उसको निशा पसंद है। ये बात हमेशा अपने तक ही रखता था। उसको डर था की अगर सबको पता चलेगा तो सब लोग उसको चिढ़ाने लग जाएंगे।

अगले दो साल तक देव सेकंडरी पूरा करता है। निशा भी गर्ल्स स्कूल से सेकंडरी पूरा करती है। निशा की मम्मी उसको अपने साथ स्कूल लेकर जाती थी। क्योकि निशा की मम्मी उस स्कूल की हेड टीचर थी।  स्कूल ख़तम होने के बाद निशा मम्मी के साथ वापिस घर आ जाती थी। निशा घर से भी बहार काम ही जाती थी। देव को ये पता चल चूका था की उसका और निशा का कुछ नहीं हो सकता। बारहवीं पूरी होने पर देव ऑस्ट्रेलिया स्टडी के लिए जाता है। यूनिवर्सिटी ऑफ़ सिडनी में जब  फर्स्ट डे फर्स्ट लेक्चर लगाने जैसे ही क्लास में एंटर होता पहला चेहरा वो निशा का देखता है।

निशा को देखते ही वो सब कुछ भूल जाता है और उसको पता नहीं क्या हो जाता है वो सीधा निशा के पास जाकर बैठ जाता है। निशा उसको देख कर पहचान लेती है। निशा बोलती है की तुम यहाँ पर कैसे। देव बोलता है किस्मत से। मुझे मेरी किस्मत यहाँ लेकर आयी है। देखो उसने मुझे यहाँ लेकर तुम्हारे साथ बैठा दिया। जिसके साथ मैं सालों से बैठना चाहता था। मुझे लगा था की तुम्हरा क्लासमेट बनाने के लिया अब अगला जानत लेना पड़ेगा। खैर किस्मत ने मुझे इसी जन्म में मौका दे दिया है।

ज़ोर से अलार्म बजता है। देव बिस्तर पर उठता है और निशा को ढूंढ रहा है।
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                                                                                                                            अशोक कुमार


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