मैं क्या करूँ? ये एक ऐसा सवाल है जिसका कोई सार्थक जवाब किसी को मालूम नहीं है। वास्तव में देखा जाए तो इसके बारे में किसी तो कुछ ज्ञान नहीं है। आज लोग जो कुछ भी कर रहें हैं वो किसी दूसरे के कहने पर कर रहे हैं, उनको स्वयं को कुछ भी मालून नहीं है।
जब आप किसी दूसरे के कहने पर जीवन का एक लम्बा सफर तय कर लेते है तो कोई बार आपको बीच रास्ते में पहुंच कर एहसास होता है की "मैं ये क्या कर रहा हूँ? मुझे तो कुछ और करना चाहिए था। मुझे तो इस काम में कोई रस नज़र नहीं आ रहा है।"
ज़्यादातर लोग उसी झूठे रास्ते पर चलते रहते है।क्योंकी वो भविष्य को बदलना ही नहीं चाहते। क्योकि अब उनमे हिम्मत नहीं है की वो नयी दिशा में चले और उस दिशा के रास्ते को दुबारे से तय करे। अंत में वो परम्परा गत अपनी मौत का इंतज़ार करते हुए इस दुनिया से चले जाते हैं।
सफर ये इस पड़ाव पर पहुंच कर कुछ लोग हिम्मती होते है जो अपना रास्ता बदल लेते हैं। कई सालों से चल रही परम्परा का त्याग कर देते है। अपने दिल की बात को सुन कर नयी दिशा में चल देतें हैं। दिशा का ज्ञान होने पर वो चल तो देते है अब चाहे सफलता मिले या न मिले लेकिन रास्ता तय करने में मज़ा ज़रूर आता है। क्योकि व्यक्ति को ज्ञान हो जाता है की उसको करना क्या है? कैसे करना है? और क्यों करना है?
एक उम्र के बाद एहसास सबको होता है की, करना क्या है? जो कान बंद करके, अपने दिल में जल रही अगनि को कर्म में बदल लेता है सिर्फ उसको ही पता चलता है की, जीवन में करना क्या है?
बाकी लोग तो बस चल रहें हैं, किसी दूसरे के कहने पर।
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