कोई क्या सोचेगा, इस बात पर तुम्हारा कोई नियंत्रण नहीं है। तुम क्या सोचोगे, इस बात पर तुम्हारा और सिर्फ तुम्हारा नियंत्रण है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता की लोग क्या सोचेंगे तुम्हारे बारे में पर इस बात से बहुत फर्क पढता है की तुम क्या सोचते हो अपने बारे में।
बस यही जीवन है और कुछ नहीं। सोचना ही है तो कम से कम अच्छा सोचो, बुरा सोचने के लिए बहुत सारे लोग है। लोग कितन बुरा सोच सकते है। सोचने दो और वो बेचारे कर भी क्या सकतें हैं। कुछ कह भी तो नहीं सकते तुमको। इसी लिए सोचते रहते है और अंत में तुम्हारे बारे में सोच-सोच कर अपना दिमाग ख़राब कर लेते हैं। कुछ ऐसा की हुआ एक दिन मेरे साथ, मेरे एक दोस्त ने मुझे एक दिन कहा की, तेरे बारे में सोच - सोच कर मेरा दिमाग ख़राब हो रहा है। मैंने कहा की फिर फोकट का मेरे बारे में सोच क्यों रहा है, सोचना बंद करदे, दिमाग सही हो जायेगा।
वो बोला, ऐसा तो नहीं हो सकता। मैंने भी कह दिया, ठीक है अपना दिमाग ख़राब करता रह फिर। मुझे तो कोई फर्क नहीं पड़ता। तू सोचता रह, जब तक मैं आराम करके आता हूँ।
मैं आराम करूँगा क्योकि, मुझे पता है की, मुझे क्या सोचना है और क्या नहीं सोचना है?
अशोक कुमार
आगे पढ़े: - किसी व्यक्ति विशेष का अनुसरण करना क्या सही है?
कोई टिप्पणी नहीं