एक दिन मैं अपने दोस्त की किराना की दुकान पर खड़ा था और एक आदमी आया जिसके साथ आठ साल का बच्चा था। मैं और मेरा दोस्त बात कर रहे थे की वो आदमी आया और उसने तेल का भाव पूछा और फिर दाल का इतने में उस आदमी के साथ आए बच्चे ने चावल की बोरी में हाथ डाला और चावल को घुमाने लगा। हाथ घूमते - घूमते चावल थोड़ा बहार गिर गया। आदमी ने बच्चे की तरफ देखा और जोर से चिल्लाया की, "तेरे को समझ नहीं आता ये क्या कर रहा है, पागल साला।"
मैं और मेरा दोस्त दोना हैरान हुए। उसने बच्चे को उठाया और काउंटर पर बैठा दिया। उसके बाद सामान लेने लगा। बच्चा दो मिनट के लिए शांत बैठा एक दम मासूम चेहरा लेकर। सब लोग व्यस्त हो गए।
बच्चा पास में पड़े कैलकुलेटर की तरफ बढ़ा। जैसे बच्चे ने कैलकुलेटर को अपने हाथ में उठा वैसे ही उसको पीछे से ज़ोर से एक तमाचा मरते हुए उसका बाप उसपर चिल्लाते हुए कहने लगा की, "तुझे एक बार में समझ नहीं आता की मैं तुझे क्या कह रहा हूँ।"
उसने ये कहते हुए एक तमाचा और लगा दिया। बच्चा ज़ोर-ज़ोर से रोने लगा और उसके पिता ने सामान लिया और बच्चे को रुलाता हुआ घर ले गया। मैं ये सोच रहा था की जब ये बच्चा बलवान हो जायेगा मतलब बड़ा हो जायेगा तो ये क्या करेगा। जो यादे आज उसका पिता उसको दे रहा है जो व्यव्हार उसके साथ उसका पिता कर रहा है अंततः जब वो बड़ा हो जायेगा तो सूत समेत अपने पिता वो वापिस कर देगा।
मैंने खुद को समझाते हुए कहा की, " बच्चा हो चाहे बूढ़ा हो, व्यवहार सदैव अच्छा हो, जो दिया है, वही पाओगे, अंत में तुम्ही पछतावोगे।
व्यव्हार एक समृति है।
अशोक
कुमार
कोई टिप्पणी नहीं