3. जीवन - मृत्यु

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कभी - कभी मुझे ऐसा लगता है की जब से मेरा जन्म हुआ है, तब से, मैं मृत्यु की दिशा में जा रहा हूँ। इस बात का प्रमाण ढूढ़ने के लिए मैं घर से निकल पड़ा।

मैंने शुरुवात में एक ऐसे घर को देखा जहाँ पर एक बच्चे का जन्म हुआ था। उसके परिवार के लोग खुशियां मना रहे थे। मिठाइयां बट रही थी। चरों तरफ खुशाल वातारण था। ये देख कर मेरे भी चेहरे पास मुस्कान आ गयी थी और मैं अपने लक्ष्य की दिशा में चल दिया।

रास्ते में मैंने बहुत सारे लोग को देखा जो आपना नित-दिन का काम करने में व्यस्त थे उनको देख कर एहसास हुआ की ठीक इसी तरह से जो बच्चा आज पैदा हुआ है वो एक दिन काम करना शुरू कर देगा।

थोड़ा ही आगे बढ़ा की मैंने देखा की एक दूकान में बहुत शोर - गुल मचा हुआ था। लोगों की भीड़ जमा हो रही थी और मैं भी वहां पर जा पहुंचा। लोग आपस में बात कर रहें थे की की लाला जी को हार्ट अटैक आ गया है। इसी बीच एम्बुलेंस आयी और लाला जी को एम्बुलेंस में डाला और ले गए। लाला जी का शरीर अकड़ गया था। लोग तरह-तरह की बातें कर रहें थे।अगले दिन मैं लाला जी के जनाजे में शामिल हुआ। लाला जी इस दुनिया से जा चुके थे और पीछे रह गया था तो उनका शरीर जिसको उनके ही घर वालों ने लकड़ियों पर रख कर आग के हवाले कर दिया।

इन दोनों घटनावों ने मुझे ये एहसास करा दिया की मैं दिन-प्रतिदिन जब से मेरे जन्म हुआ है तब से लेके अब तक मैं मौत की दिशा में जा रहा हूँ। मैं ही नहीं बल्कि ये पूरा संसार मौत की दिशा में जा रहा है। जीवन के इस सफर में जो घटनाये हमारे साथ होंगी हमको उस में शामिल होना है और एक दिन लाला जी की तरह लोग हमारे जनाजे में शामिल होंगे और हम अपने सफर को ख़तम करके मंज़िल पर पहुंच चुके होंगे।



जीवन का अंत मृत्यु है…



अशोक कुमार





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