मेरे मित्र, राहुल ने मुझसे पूछा की, मैं कौन हूँ? उसने कहा जब भी, ये सवाल मेरे दिल में आता है, तो मेरे पास इस सवाल का कोई जवाब नहीं होता है। क्या तुम मुझे बता सकते हो? उसने बहुत ही जिज्ञासा पूर्ण ये सवाल किया।मैंने उसको जवाब दिया की, जैसे हमको सिखाया गया है और समय के जिस दौर पर ये दुनिया पहुंच चुकी है, उस हिसाब से तुम राहुल हो। तुम एक पुरुष हो। इस धरती पर तुम मानव - जीवन में हो।
राहुल तर्कपूर्ण बोला की, ये तो मुझे पता है। पर कभी-कभी मुझे लगता है की जैसे मैं खुद को जनता ही नहीं हूँ। कभी-कभी ऐसा लगता है की मैं कभी खुद से मिला ही नहीं हूँ। कभी-कभी ऐसा लगता है की मैं इस दुनिया में तो बहुत सारे लोगों को जनता हूँ पर खुद से बहुत अनजान हूँ।
बस किसी ने मेरा नाम रख दिया और ये दुनिया मुझे राहुल-राहुल कह के बुलाती है। इस से ज़्यादा मैं खुद के बारे में कुछ नहीं जनता हूँ।
मैंने उसको समझाते हुए कहा की, तुम इस धरती पर एक जीव हो, जो इस धरती पर मजूद अरबों-खरबों जिव-जंतुओं की तरह ही है पर तुम्हारे अंदर जिज्ञासा भरा एक ऊर्जामान मन है, सिर्फ मन की अपार जिज्ञासा भरी शक्ति की वजह से तुम दूसरों से अलग होते गए और जानने की शक्ति की वजह से आज इस मुकाम पर पहुंच गए हो। खुद के खोज में मानव ने, ये आज की तकनिकी दुनिया बना डाली। जिन लोगों ने इस दुनिया को महान अविष्कार करके दिए। अंत में उन्होने भी माना, अगर वो अपने नाम, काम, को त्याग दे, तो उनको भी नहीं पता है, की वो कौन हैं?
वास्तव में इस दुनिया में किसी को नहीं पता है की वो कौन हैं। इस फिराक में एक उम्र के बाद सब लोग खुद की तलाश में है। तुम भी उसी दिशा में हो मैं भी उसी दिशा में हूँ। आओ दोनों साथ में खोजे, खुद को।
अशोक कुमार
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