22. किसी ने मुझसे पूछा की कभी-कभी मुझे लगता है की मेरा ज्ञान समापत हो गया है? इसका क्या मतलब है।

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Image result for dropज्ञान का समाप्त हो जाना ही जीवन की शुरुवात है। जीवन के आरम्भ में हमको कुछ भी पता नहीं रहता है। जब हम इस दुनिया में कदम रखतें हैं एक नवजात शिशु के रूप में तो हमको भौतिक, समाजिक, व्यापारिक, आध्यात्मिक किसी भी शब्द का ज्ञान नहीं रहता है। जीवन में एक दम सुकून होता है। किसी को कुछ कहते भी नहीं हैं और सबको सब कुछ मालूम हो जाता है। बिना कहे ही लोग समझ जाते हैं।

ढाई-तीन साल बाद जैसे ही शब्द फूटने लगते हैं लोग अपना ज्ञान हमारे दिमाग में भरने लगते है। फिर ज्ञान का सिलसिला शुरू हो जाता है। ज्ञान रटने का और ज्ञान पढ़ने का। ज्ञानी होने का। क्लास में प्रथम आने का। सबसे बड़ा ज्ञानी होने का। ज्ञान देने का। ज्ञान लेने का। हर स्तिथि में खुद को श्रेठ और विद्वान साबित करने का समय।

लेकिन जब जीवन का अंत आता है और जैसे - जैसे आदमी मृत्युं की दिशा में जाता है विद्वान खुद को अज्ञानी समझने लगता है। उसको ऐसा लगता है जैसे उसको कुछ मालूम ही नहीं है। अब जीवन वहीँ पहुंच गया है जहाँ से शुरू हुआ था। ये वही समय है जब आप शून्य हो चुके हैं।
और वास्तव में आप ज्ञानी हो चुके हैं। क्योकि शून्यता की ज्ञान का प्रतिक है।

                                                                                                                                     अशोक कुमार



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