ईमानदारी व्यक्ति के स्वाभाव में होती है। स्वाभाव से सोच में बदलती है।
सोच से ईमानदारी वचन में बदलती है। वचन से ईमानदारी कर असर कर्म में दिखाई
देता है। कर्म से संतुष्ट व्यक्ति खुद को ईमानदार महसूस करता है। उसको खुद
पर गर्व होता है। जो लोग उसके आस पास होते हैं। वो लोग ऐसा आदमी को पसंद
करते हैं। ईमानदारी से ही आदमी ज़िम्मेदार बनता है।
जिम्मेदारी वाला आदमी ही जीवन में उच्च पदों तक पहुँचता है।
इसके समानांतर, बेईमानी भी व्यक्ति के स्वाभाव में होती है। स्वाभाव से सोच में चली जाती है। सोच से वचन में रूपांतरित हो जाती है। वचन से कर्म में दिखाई देने लग जाती है। बेईमान आदमी का काम देख ईमानदार आदमी, झट से पकड़ लेता है। ये आदमी कामचोर है। ये आदमी खुद से ईमानदार नहीं है। बेईमानी से आदमी गैरज़िम्मेदार बनता है।
गैरजिम्मेदार आदमी कभी उच्च पद तक नहीं पहुंच पाता है। अगर वो छल से या बल से पहुंच भी जाता है तो वो उस पद को लम्बे समय तक संभल नहीं सकता है और नीचे गिर जाता है।
अशोक कुमार
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